Monday, January 25, 2016

प्यार का इम्पैक्ट 


बहुत दिनों बाद एक मीठी आवाज़ कानो में घुली सुन कर ऐसा लगा जैसे दूर किसी मंदिर में घंटी बज रही हो ! जैसे ही मैं क्लब हाउस में घुसा इस आवाज़ ने मुझे आकर्षित किया मैं अपने आप को रोक न सका और उसके पास जाकर मैंने कहा हाय! आई ऍम राजेश....!! 
उसने भी तुरंत जवाब दिया, हाय इंदु! 
मैंने पूछा  "इंदु यानी"? 
उसने कहा चाँद.....
चाँद? आर यु श्योर? 
हाँ भई मेरा नाम है।  
मेरे ख्याल से लक्ष्मी होता है... मैंने कहा 
नहीं
खैर मुझे ज्यादा भरोसा भी नहीं था अपने इंदु के पर्यायवाची के बारे में , मैंने समर्पण कर दिया। 
उसने पूछा "राजेश क्या"? 
साव मैंने कहा 
साव?? एक आश्चर्य मिश्रित भाव उसके चहरे पर नाची!! 
"क्यों? कुछ प्रॉब्लम है"?
नहीं मैं भी साव हूँ लेकिन मैं साह लिखती हूँ!!
क्यों?
बस ऐसे ही...  मुझे थोड़ा अंदाजा हो गया यह साव वाला कॉम्प्लेक्स है।  पता नहीं क्यों ज्यादातर लोगो को बिहार और साव से हीनभावना का बोध होता है  शायद यही उसे भी था।  फिर हम अपने हॉबी और एक दूसरे के बारे में बात करने लगे।  

दोपहर का खाना खाने के बाद मैं अपने लिखे कुछ कहानियो को पढ़ कर सुनाया मेरा लेख सुनने के बाद उसने कहा 
"तुम बहुत अच्छा लिखते हो तुम्हारे लिखने का स्टाइल अच्छा है!"

खैर वक़्त कैसे बित गया पता ही नहीं चला।  हम क्लब हाउस से निकल कर चल पड़े तभी हमारे एक मित्र अपनी कार लेकर आ गए।  हम उसके कार में बैठ गए।  मुझे उसके बगल में बैठने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। हम कुछ इधर उधर की बाते करते हुए निकल पड़े मैंने उसे अपना विजिटिंग कार्ड दिया और कहा "अगर कभी बात करने की इच्छा हो तो फ़ोन कर लेना" , 
उसने कार्ड रख लिया। 

तो ये थी हमारी पहली मुलाकात (तारीख २३ अप्रैल २०००) पता नहीं क्यों पहली ही मुलाक़ात में मुझे उससे कुछ आकर्षण सा महसूस हुआ उसके बात करने का अंदाज उसकी आँखे और..... मैं एक सम्मोहन में बंधा हुआ घर आया।

दो दिन के बाद मुझे मेरी भतीजी गुड़िया से खबर मिली "अंकल इंदु आंटी का फ़ोन आया था"
क्या??  मुझे झटका लगा.......  
"क्या कहा उसने"? 
"कुछ नहीं, बस कहा अंकल को बोल देना "

मेरे पास उसका नंबर नहीं था।  
मैं रोज़ बड़ी बैचनी से उसके फ़ोन का इंतज़ार करता रहा.......  और फिर दो  दिन बाद वही मधुर खनकता हुआ स्वर सुनाई पड़ा जैसे कही कोई कांच टूटा हो और फिर गिर कर बिखर गया हो एक खनक के साथ.... . 
हम बहुत देर तक बात करते रहे।  

दूसरी मुलाकात हमारा बहुत नाटकीय ढंग से हुआ हड़ताल के दौरान मैंने उसे फ़ोन किया और हम बैकुंठनाथ मंदिर में मिले (तारीख ११ मई २०००) लेकिन ज्यादा बात हम नहीं कर पाये पर जब उसे विभय घर छोड़ने गया तो गलती से उसका पर्स मेरे पास छूट गया मुझे तसल्ली हुई चलो इस बहाने तो फिर से मुलाक़ात होगी!!

दूसरे दिन वह मेरे यहाँ आई मुझे पता नहीं था, मैं तैराकी करने गया था, वापस आया तो मुझे अपने आँखों पर विश्वास नहीं हुआ वह मेरे दूकान पर बैठी करीब डेढ़ घंटे से मेरा इंतज़ार कर रही थी!  सफ़ेद सलवार सूट और बैगनी दुपट्टे में काफी खूबसूरत लग रही थी वह !! 
मैं अपने आप को कोसने लगा.....  मैं उसे लेकर कॉफ़ी हाउस गया।  हम बात करते रहे और कॉफ़ी पिते रहे... कभी दोस्तों के बारे में तो कभी अपने बारे में , कभी वह हंस देती तो उसके मोती जैसे दांत चमक उठते! 

वक़्त कैसे बित गया पता ही नहीं चला।  

तो ये थी हमारी तीसरी मुलाकात। (तारीख १२ मई २००० )


हमारी चौथी मुलाकात (तारीख १४ मई २०००) फिर से क्लब हाउस में हुई लेकिन हम ज्यादा बात नहीं कर पाये। वापस आते वक़्त हम अली के सूमो में सवार हुए इंदु आगे बैठी संगीता के साथ दोनों आपस में पता नहीं क्या क्या बाते कर रही थी। सगीता अपने घर के पास उत्तरी  तो मुझे सामने इंदु के साथ बैठने का मौका मिला। 
इंदु काफी तनाव में लग रही थी घर पहुचने में देर होने के कारण,  मुझे  भी अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन उसके पास होने के एहसास से ही मेरे रोम रोम पुलकित हो रहे थे!  

दूसरे दिन मैं किसी काम से बाहर गया था लेकिन मेरा दिल कह रहा था इंदु का फ़ोन आएगा और आया भी लेकिन मैं नही था। जब मुझे पता  चला तो मैं अपने ऊपर काफी खिझा था।  


दूसरे  दिन सुबह से ही मैं उसके फ़ोन का इंतज़ार कर रहा था।  सुबह से शाम फिर शाम से रात हो गयी फ़ोन नहीं आया। करीब दस बज गए तो मैंने सोचा अब फ़ोन नहीं आएगा तो मैं और राज रवि के दूकान चले गए हम अभी रवि के दूकान पहुंचे ही थे की खबर आई 
"अंकल आपका फ़ोन आया है.."

 मेरा? इस वक़्त किसने किया होगा यार?? 
मेरे दिल ने कहा इंदु.......  लेकिन इतने रात को ...!!!! नहीं कोई और होगा, आते ही भैया ने बताया इंदु का फ़ोन.......  
लेकिन इस वक़्त?/ 
मैं शंका से भर उठा फ़ौरन फ़ोन घुमाया। 
"मैंने सोचा कल तुम जा रहे हो इसलिए मैंने फ़ोन किया था"  
चलो इस बात का मुझे अहसास हुआ कम  से कम  मेरा तुम इतना तो ख्याल रखती हो...! 

इंदु पहली ही मुलाकात में मुझे अच्छी लगी पता नहीं क्यों उसकी बात करने का ढंग भोलापन फिर हमारे विचार काफी मिलते है।  न जाने क्यों बार बार उससे मिलाने का दिल करता है।

इंदु ने कहा था कल मैं आउंगी मैं उसका बैचनी से इंतज़ार कर रहा था।  शाम करीब ६ बजे वह आयी होंठो पर प्यारी सी मुस्कान लिए हुए (तारीख १७ मई २००० )
थोड़ी देर तक हम दूकान मैं बैठे रहे फिर मैंने कहा "चलो कॉफ़ी हाउस चलते है"  
हम बस बाते करते रहे राज मैं और इंदु......  राज को टयूशन पढ़ाने जाना था सो वह निकल गया।  
मैंने उसे अपना ताज़ातरीन लेख निकाल कर दिया वह पढ़ती जाती और मुस्कुराती जाती और मैं.... उसे बस देखे जा रहा था......  थोड़ी देर में राज वापस आ गया और फिर रवि। हम वापस निकल पड़े मैं और राज  उसे घर छोड़ने गए।
  
जब भी मैं इंदु से मिलता हूँ मुझे पता नहीं क्यों अच्छा लगता है।  वह मेरे विचारो को समझती है ,मुझे जानने की कोशिश करती है।  हम अच्छे दोस्त है और रह  सकते है।  यह मेरा विश्वास है खैर आगे वह जाने लेकिन मुझे विश्वास ही नहीं यकीन है की मैं उसके पैमाने पर खरा उतरूंगा।  वैसे तो बहुत लोग रोज़ की ज़िन्दगी में मिलते है लेकिन कोई ही होता है जो किसी के लिए ख़ास होता है और  तुम ख़ास हो तुम स्पेशल हो मेरी ज़िन्दगी में तुम वह चाँद  हो जिस पर ग्रहण नहीं लग सकता और मेरे चाँद में कोई दाग नहीं है... !!!!


This blog post is inspired by the blogging marathon hosted on IndiBlogger for the launch of the #Fantastico Zica from Tata Motors. You can apply for a

No comments:

Post a Comment