Thursday, March 7, 2013

Dil





"दिल"
 
मैंने अपने दिल से एक दिन पूछा, क्या तेरे दिल में कुछ है ?
क्या तू भी किसी के लिए तड़पता है या यूं ही धड़कता है ??
तो मेरे दिल ने मुझे धड़कते हुए कहा "हाँ मैं भी तड़पता हूँ ,
किसी की याद में धड़कता हूँ,  जब किसी के आने का गुमाँ होता है तो मैं जोर से मचलता हूँ 
ना आने की खबर हो तो खुद में ही सिमटता हूँ, 
खुशी का आलम हो तो आँखों में चाँद बन चमकता हूँ, 
ग़म हो तो होंठों से आह बन निकालता हूँ, 
अँधेरी रात में मैं दिया बन जलाता हूँ ,
हो उजाले का राज तो तुम्हारे साथ चलता हूँ, 
मैं तुम्हारा दिल हूँ जो सिर्फ धड़कता नहीं है ,
तुम्हारे रगों में जीवन रूपी लहू को दौड़ता है ,
सुख और दुःख में तुम्हे हसना और रोना सिखाता है, 
तुम्हे तुम्हारे ज़ज्बातो का अहसास कराता है, 
बुरे कर्मो पर तुम्हे धिध्कारता है, 
अच्छे कर्मो पर तुम्हारे यह मुस्कुराता है, 
देखना कभी किसी का दिल ना टूटे, 
यह बहुत नाज़ुक होता है, 
जो विश्वास खाता है और भरोसे पर जीता है, 
कभी किसी का विश्वास ना तोड़ना भरोसा ना छिनना,   
बस दिल से दिल मिलाते रहना धड़कनों को धड़काते रहना, 
पत्थर दिल बनाने से पहले, पत्थर के नीचे चले जाते रहना, 
पत्थर के नीचे चले जाते रहना, पत्थर के नीचे चले जाते रहना।
 
 
 
 
 

अपनी प्रतिक्रिया अवश्य वयक्त करे
राजेश साव 
 
 
 
 

2 comments:

  1. Thanx for a wonderful poem 'Dil'
    After a long tome read a hindi poem...felt good :)

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    1. Thanks kislata for your encouraging comment. If it touched your heart my effort is sucessful. Thank you once again.

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